( तर्ज - मेरे मन की गंगा ० )
मुझे नहीं है चेला ,
मैं तो रहता सदा अकेला ।
मुझपर करते सारे प्रेम ,
मेरा नाता कहीं नहीं है ॥ टेक ॥
वे समझेंगे बात हमारी ,
घरको फूंके फिर बोले ।
जरा इधर के , जरा उधर के ,
वे धोखे के है टोले ।
रहा न वह घरबारा |
साधू भी नहिं पूरा ।
मुझपर करते सारे प्रेम , मेरा ० ॥ १ ॥
मैं पानी के समान बहता ,
रहता हूँ दिनरात सदा ।
सब संतों की बात सुनाता - भक्ति
से न हो कोई जुदा
सुने न सुनने पाये ।
खुशी हुई तब आये ।
मुझपर करते सारे प्रेम , मेरा ० ॥ २ ॥
दिखता हूँ में संस्थावाला ,
साथी - संगाती रहने से ।
सबही कच्चा माल भरा है ,
एक दिन रूठेंगे हमसे ॥
कोऊ बिरला रह पाये ,
कहे तुकडया समझाये ।
मुझपर करते सारे प्रेम , मेरा ० ॥ ३ ॥
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